किसी के भाव को समझे बिना अपनी राय न बनाएं
गर्मी के दिनों में एक शिष्य अपने गुरु से एक सप्ताह की छुट्टी लेकर अपने गांव जा रहा था। उस समय गांव पैदल ही जाना पड़ता था। जाते समय रास्ते में उसे एक कुआं दिखाई दिया। शिष्य प्यासा था, इसलिए उसने कुएं से पानी निकाला और अपना गला तर किया। पानी पीने से उसे विशेष तृप्ति का अनुभव हुआ, क्योंकि कुएं का जल मीठा और ठंडा था। शिष्य ने सोचा, क्यों न यहाँ का जल गुरुजी के लिए भी ले चलूं। उसने अपनी मशक भरी और वापस आश्रम की ओर चल पड़ा। गुरुजी ने शिष्य से मशक लेकर जल पीया और संतुष्टि महसूस की। उन्होंने शिष्य से कहा, ‘वाकई जल तो गंगाजल के समान है। गुरुजी से इस तरह की प्रशंसा सुनकर शिष्य आज्ञा लेकर अपने गांव चला गया। कुछ ही देर में आश्रम में रहने वाला एक दूसरा शिष्य गुरुजी के पास पहुंचा और उसने भी उस जल को पीने की इच्छा जताई। गुरुजी ने मशक शिष्य को दी। शिष्य ने जैसे ही घूंट भरा, उसने पानी बाहर कुल्ला कर दिया। शिष्य बोला, ‘गुरुजी इस पानी में तो कड़वापन है और शीतल भी नहीं है। आपने बेकार ही उस शिष्य की इतनी प्रशंसा की। गुरुजी बोले, ‘बेटा, मिठास और शीतलता इस जल में नहीं है, तो क्या हुआ। इसे लाने वाले के मन में तो है। जब उस शिष्य ने जल पिया होगा, तो उसके मन में मेरे लिए प्रेम उमड़ा। यही बात महत्त्वपूर्ण है। मुझे भी इस मशक का जल तुम्हारी तरह ठीक नहीं लगा, लेकिन मैं यह कहकर उसका मन दु:खी नहीं करना चाहता था।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि किसी के भाव को समझे बिना, उसके प्रति अपनी राय ना बनाएं।