संकल्प शक्ति। हर मनुष्य की चित्तवृत्तियां हमेशा दो धाराओं में बहती हैं। एक धारा अच्छी बातों की ओर तो दूसरी धारा अच्छी सोच पर सवार होकर बुराईयों की ओर खीचती है। ऐसी स्थिति में तुरन्त विवेक का उपयोग करना चाहिये, अन्यथा प्रथम धारा को तेजी के साथ दूसरी धारा बहा ले जायेगी, क्योंकि बुराई का पलड़ा भारी होता है। यहाँ पर प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि बुराईरूपी धारा को रोकने के लिये विवेक का उपयोग कैसे करें? चित्तवृत्तियों के निरोध के क्या उपाय हैं?
इस बारे में सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का चिन्तन है कि ”चित्तवृत्तियों को अच्छे विचारों की ओर मोडऩे के लिए प्रथम उपाय है दूषित विचारों से तत्काल ध्यान हटाकर अपनी इष्ट माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा का स्मरण करने लगें, श्री दुर्गाचालीसा पाठ या मन्त्रों का जाप करने लगें। दूसरा उपाय है ”प्रच्छर्दन और विधारण।” श्वास को नासिका मार्ग से बाहर निकालने का नाम प्रच्छर्दन है और कुछ समय तक उसे बाहर ही रोके रखना विधारण कहलाता है। यह प्रक्रिया बार-बार कम से कम दो-तीन मिनट तक अपनायें, और मन ही मन दुहराते रहें कि हे माँ, हे आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा! मुझे बुरे विचारों से मुक्ति प्रदान करो। इस युक्ति से भी चित्तवृत्तियों को स्थिर किया जा सकता है। तीसरा उपाय है अनहदध्वनि को सुनना। इसके लिये खाली समय में पद्मासन या सिद्धासन लगाकर बैठ जायें और दोनों हाथों के अंगूठों से कानों का बन्द कर लें तथा बीच की उंगलियों को आंखों की पलकों के ऊपर रखें तथा बीच की नीचे वाली उंगलियों से नाक के दोनों छिद्रों पर हल्का दबाव बनाकर अन्दर ही अन्दर ‘ॐ’ का उच्चारण करें। धीरे-धीरे यह पवित्र शब्द मस्तिष्क में गुंजरित होने लगेगा। चित्तवृत्तियों को स्थिर करने के लिए यह उपाय भी अतिउत्तम है।”
– अलोपी शुक्ला