Thursday, May 9, 2024
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कामदगिरि में श्रीराम ने व्यतीत किए थे अपने वनवास के 11 वर्ष

भारत में तीर्थयात्रा हिन्दुओं की जि़ंदगी का अहम हिस्सा है। चार धाम की तीर्थयात्रा में चित्रकूट एक अहम पड़ाव है, लेकिन चित्रकूट में ही एक ऐसी जगह है, जहाँ की यात्रा किए बिना आपकी तीर्थयात्रा अधूरी है और वह जगह है कामदगिरि, जिसे अक्सर असली चित्रकूट भी कहा जाता है।

कामदगिरि का महत्त्व

रामायण में कामदगिरि का विशेष महत्त्व है। ये वही स्थान है, जहाँ भगवान् श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी ने अपने वनवास के 11 साल व्यतीत किए थे और यह वह जगह भी है, जहाँ भरत-मिलाप हुआ था।

 कामदगिरि को वरदान

रामायण की पौराणक कथा के अनुसार, जब भगवान् श्रीराम ने इस पर्वत को छोड़कर आगे बढऩे की ठानी, तो पर्वत ने श्रीराम से चिंताजनक स्वर में कहा कि ‘चित्रकूट की अहमियत केवल आपके के वहाँ  रहने तक ही थी और आपके यहाँ से चले जाने के बाद उस जगह को कोई नहीं पूछेगा। ये सुनकर भगवान् श्रीराम ने पर्वत को आशीर्वाद दिया कि जो कोई भी इस पर्वत की परिक्रमा पूरा करेगा, उसकी मनोकामना पूरी होगी और चित्रकूट धाम की यात्रा भी इस पर्वत की परिक्रमा के बाद ही संपन्न मानी जाएगी। इच्छा पूरी करने वाले पहाड़ के नाम पर ही इस पर्वत का नाम कामदगिरि रखा गया और आज हज़ारों श्रद्धालु मन में अपनी इच्छाएँ लिए, उन्हें पूरी करने हेतु कामदगिरि की परिक्रमा करते हैं।

अतिप्राचीन तीर्थस्थल है चित्रकूट

 चित्रकूट मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है। उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में 38.2 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला शांत और सुन्दर चित्रकूट, प्रकृति और ईश्वर की अनुपम देन है। चारों ओर से विंध्याचल पर्वत शृंखलाओं और वनों से घिरे चित्रकूट पहाड़ों से घिरा आश्चर्यजनक स्थल है। मंदाकिनी नदी के किनारे बने अनेक घाट विशेषकर रामघाट और कामतानाथ मंदिर में पूरे साल श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। माना जाता है कि भगवान् श्रीराम ने अपनी धर्मपत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के चौदह वर्षो में से ग्यारह वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे। इसी स्थान पर ऋषि अत्रि और सती अनसुइया ने ध्यान लगाया था। यहाँ इसी जि़ले से सटा हुआ एक स्थान राजापुर है, जहाँ कुछ लोग तुलसीदासजी का जन्म स्थान बताते हैं। यहीं रामचरितमानस की मूल प्रति भी रखी हुई है।

कामदगिरि पर्वत: इस पवित्र पर्वत का धार्मिक महत्त्व अत्यधिक है। श्रद्धालु कामदगिरि पर्वत की 05 किलोमीटर की परिक्रमा करके अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण होने की कामना करते हैं। जंगलों से घिरे इस पर्वत के तल पर अनेक मंदिर बने हुए हैं। लोकप्रिय कामतानाथ और भरत मिलाप मंदिर भी यहीं स्थित है।

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