वर्तमान की विषम परिस्थितियों में घिरे हुए मनुष्य के पास सिर्फ एकमात्र मार्ग है कि उसे वर्तमान को संवारना पड़ेगा, सत्यपथ का राही बनना पड़ेगा और गुरु की शरण में जाना होगा, उसे भक्ति, ज्ञान व आत्मशक्ति के पथ पर बढऩा ही होगा और इन सब के लिए हमारे शरीर का स्वस्थ होना नितांत आवश्यक है। जीर्ण-शीर्ण शरीर से न तो भक्ति हो सकती है, न तो ज्ञानार्जन और न ही आत्मशक्ति की प्राप्ति हो सकती है। अत: यदि मनुष्य अपना भला चाहता है, तो उसे शक्तियोग एवं धर्म के पथ पर चलना पड़ेगा। हमारे ऋषि-मुनियों ने भी इसी पथ पर चलकर अपने पूर्णत्व को प्राप्त किया है। हमें भी योगमार्ग पर चलना होगा। योग का तात्पर्य है, जोडऩा। जो जड़ को चेतन बना सके, अंधकार में प्रकाश ला सके तथा निष्क्रिय को सक्रिय कर सके। मगर, इसके लिए भी साधक के अंदर इच्छाशक्ति का होना नितांत आवश्यक है।
‘योग ही जीवन है, वियोग ही मृत्यु है।
कुण्डलिनी का जागरण ही, जीवन की मुक्ति है।।’
योग के लाभ
वर्तमान में मनुष्य की जीवनशैली पतन की चरमसीमा पर है। उसका आहार-विचार और व्यवहार तमोगुणी और रजोगुणी है तथा शारीरिक श्रमशक्ति क्षीण हो चुकी है। मनुष्य शारीरिक अंगों का बहुत कम उपयोग कर रहा है, जिसके फलस्वरूप उसकी शारीरिक जड़ता और रोगों की वृद्धि हो रही है। हमारे ऋषि-मुनियों ने इसी जड़ता और रोगमुक्ति, ‘मैं’ की खोज और मुक्ति के लिए योग मार्ग के अन्तर्गत अष्टांग योग की जानकारी दी है। अत: वर्तमान में मनुष्य यदि स्वस्थ जीवन, मन और बुद्धि चाहता है, सुख-शान्ति-समृद्धि चाहता है, तो योग के पथ पर चलना ही होगा। साधक को योगमार्ग साधनापथ पर चलकर अपनी इन्द्रियों का संयमन कर ध्यान और समाधि की ओर बढऩे की लालसा होनी चाहिए। इस मार्ग पर चलने वालों को उतावलापन नहीं होना चाहिए। धैर्य के साथ दृढ़ इच्छाशक्ति लेकर बढऩे वाला व्यक्ति सफलता अवश्य प्राप्त करता है।
‘शक्ति का अर्जन ही योग है, शक्ति का विसर्जन ही भोग है।
शक्ति का उपयोग ही जीवन, शक्ति का उपभोग ही मृत्यु है।।’