Friday, May 10, 2024
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वनवास के समय राम ने स्वीकार किया था शबरी का आतिथ्य

माता शबरी भील राजकुमारी थीं। उनका स्थान प्रमुख रामभक्तों में है। राजकुमारी शबरी बेहद ही होनहार और खूबसूरत थीं। उनके पिता एक नगर के राजा थे। वनवास के समय राम ने शबरी का आतिथ्य स्वीकार किया था और उसके द्वारा प्रेमपूर्वक दिए हुए कन्दमूल फल व जूठे बेर खाये थे।

माता शबरी की कथा 

बात उस समय की हैं, जब भगवान् श्रीराम का जन्म भी नहीं हुआ था। भील जाति के एक कबीले के राजा (मुखिया) अज थे, उनके घर में एक कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम श्रमणा था। श्रमणा, शबरी का ही दूसरा नाम हैं। शबरी की माता का नाम इन्दुमति था। शबरी बचपन में पक्षियों से बातें किया करती थी, जो सभी के लिए आश्चर्य का विषय था। धीरे-धीरे शबरी बड़ी हुई, लेकिन उसकी कुछ हरकतें अज और इंदुमति की समझ से परे थे।

समय रहते शबरी के बारे में उसके माता-पिता ने किसी पंडित से पूछा कि क्या कारण हो सकता है कि उनकी बेटी वैराग्य की बातें करती हैं? पंडित जी ने सलाह दी कि इसका विवाह करवा दो, सबकुछ ठीक हो जायेगा। राजा अज और भीलरानी इन्दुमति ने शबरी के विवाह के लिए एक बाड़े में बहुत से पशु-पक्षियों को एकत्रित कर दिए, तो शबरी ने अपनी माँ से पुछा कि ‘माँ हमारे बाड़े में इतने पशु-पक्षी क्यों हैं?’ तब इंदुमती बताती है कि ‘ये तुम्हारे विवाह की दावत के लिए हैं, तुम्हारे विवाह के दिन इन पशु-पक्षियों का विशाल भोज तैयार किया जायेगा।’

शबरी (श्रमणा) को यह बात ठीक नहीं लगी और उसने निर्णय लिया कि अपने विवाह के लिए मैं इतने जीवों का बलिदान नहीं देने दूंगी। अगर विवाह के लिए इतने जीवों की बलि दी जाएगी तो मैं विवाह ही नहीं करुँगी। श्रमणा ने रात्रि में सभी पशु-पक्षियों को आज़ाद कर दिया। जब श्रमणा (शबरी) बाड़े के किवाड़ को खोल रही थी, तो उसको किसी ने देख लिया, इस बात से शबरी डर गयी और वहां से भाग निकली और भागते-भागते ऋषिमुख पर्वत पर पहुँच गयी, जहाँ पर अनेक ऋषि रहते थे।

शबरी नित्यप्रति सुबह ऋषियों के आश्रम को साफ कर देती थी और हवन के लिए सूखी लकडिय़ों का बंदोबस्त भी कर देती। कुछ दिनों तक ऋषि समझ नही पाए कि कौन है जो उनके नित्य के काम निपटा रहा है? कहीं कोई माया तो नहीं हैं, फिर जब ऋषियों ने अगले दिन भोर में शबरी को देखा तो उन्होंने उससे उसका परिचय पूछा। शबरी ने बताया कि ‘वह एक भीलनी है।’ ऋषि मतंग ने कहा कि ‘तुम मेरी बेटी के तुल्य हो’ और शबरी को एक कुटिया में शरण  दे दी। समय बीतता गया, मतंग ऋषि बूढ़े हो गए। मतंग ऋषि ने घोषणा की कि ‘अब मैं अपनी देह छोडऩा चाहता हूँ।’ तब शबरी ने कहा कि ‘एक पिता को मैं वहां पर छोड़कर आयी और आज आप भी मुझे छोड़कर जा रहे हैं, अब मेरा कौन ख्याल रखेगा?’

मतंग ऋषि ने कहा, ‘बेटी तुम्हारा ख्याल अब राम रखेंगे।’ शबरी सरलता से कहती है कि ‘राम कौन हैं और मैं उन्हें कहाँ ढूँढ़ूंगी?’ मतंग ऋषि ने कहा, ‘बेटी तुम्हें उनको खोजने की ज़रुरत नहीं है, वे स्वयं तुम्हारी कुटिया पर चलकर आयेंगे।’ शबरी ने मतंग ऋषि के इस वचन को पकड़ लिया कि राम आयेंगे। शबरी नित्यप्रति राम के लिए फूल बिछाकर रखती, उनके लिए फल तोड़कर लाती और पूरे दिन भगवान् श्रीराम की प्रतीक्षा करती। प्रतीक्षा करते-करते शबरी बूढ़ी हो गई, लेकिन वह दिन आ ही गया, जब शबरी के वर्षों की प्रतीक्षा समाप्त होने वाली थी। 

शबरी ने फूल बिछा रखे थे और आते-जाते लोगों को मना कर रही थी कि इस फूल पर भगवान् चलेंगे। जब भगवान् श्रीराम आये तो शबरी एक पत्थर के आसन के पास बैठी थी। शबरी ने पहली दृष्टि में भगवान् श्रीराम को पहचान लिया और उनका खूब आदर सत्कार किया। शबरी श्रीराम के लिए बेर तोड़कर लायी थी और एक-एक बेर को चखकर जूठे मीठे बेर भगवान् श्रीराम को खिलाए। इस प्रकार शबरी के वर्षो की प्रतीक्षा समाप्त हुई।

माता शबरी की कथा रामायण, भागवत, रामचरितमानस, सूरसागर, साकेत आदि ग्रंथों में मिलती है। भक्त कवियों ने खुले रूप से शबरी की भक्ति निष्ठा का उल्लेख किया है।  

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