Saturday, April 27, 2024
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षट्कर्म- त्राटक || त्राटक की प्रक्रिया

मनुष्य के अंदर अलौकिक शक्ति एवं सामथ्र्य छुपी हुई है, मगर एकाग्रता न होने के कारण वह उसका सही सदुपयोग नहीं कर पाता। मनुष्य के नेत्र ऊर्जा के केन्द्र कहे गये हैं। वह अपने नेत्रों की ऊर्जा के माध्यम से मारण, मोहन, सम्मोहन, स्तम्भन, उच्चाटन कर सकता है व जीवनदान दे सकता है। इसके लिए एक बहुत बड़े अभ्यास की आवश्यकता होती है। त्राटक के माध्यम से हम मन को एकाग्र करते हैं और मन की एकाग्रता पर कुण्डलिनी चेतना प्रभावक होकर आज्ञाचक्र व नेत्रों के माध्यम से अपना कार्य करना प्रारम्भ कर देती है। पूर्ण त्राटक सिद्ध होने पर साधक एक स्थान पर रहकर दूरस्थ किसी स्थान पर अपनी एकाग्रता व ध्यान के माध्यम से किसी भी कार्य को अंजाम दे सकता है। इसकी प्रारम्भिक स्थिति में ही बौद्धिक क्षमता बढ़ती है, आरोग्यता की प्राप्ति होती है, विकारों का दमन होता है और प्राणों पर पकड़ मजबूत होती है।

त्राटक की प्रक्रिया

त्राटक करने की अलग-अलग कई प्रक्रियायें हैं, जिसमें प्रमुखता से शक्तिचक्र के माध्यम से किया जाता है। किसी ज्योति पर त्राटक, चंद्र त्राटक एवं सूर्य त्राटक आदि अनेकों प्रक्रियायें हैं। यहां पर प्रारम्भिक शक्तिचक्र त्राटक के विषय में बताया जा रहा है। साधक को समतल भूमि पर किसी आसन पर बैठ जाना चाहिए और अपने नेत्रों की सीध में तीन से पांच फिट की दूरी पर किसी दीवार के ऊपर शक्तिचक्र को लगा लेना चाहिए। फिर खुले नेत्रों से बिना पलक झपकाये शक्तिचक्र के मध्य में अपने नेत्रों को एकाग्र करना चाहिए, प्रारम्भ में दो-चार मिनट ही बिना पलक झपकाये त्राटक हो पाता है। अभ्यास करते-करते कई-कई घंटों का त्राटक सिद्ध होजाता है। इसमें योग्य त्राटकसिद्ध गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक होता है। प्रारम्भिक अवस्था में करने पर इससे नेत्रों के रोग दूर होते हैं और उनकी दृष्टि व क्षमता बढ़ती है।

त्राटक में कुछ महत्त्वपूर्ण सावधानियां अवश्य बरतनी चाहिएं। जब शरीर में ज़रूरत से ज्यादा आलस्य हो, बुखार हो या कोई तकलीफ हो, तो त्राटक नहीं करना चाहिए। यदि नेत्रों में दर्द हो या लालिमा हो, तो उस वक्त त्राटक नहीं करना चाहिए। त्राटक करने वाले साधक को यम-नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जितनी देर खुले नेत्र रखकर त्राटक करें, उसके 10 प्रतिशत समय तक नेत्र बंद करके ध्यान में अवश्य बैठें। ध्यान में अंतरत्राटक का क्रम करें, अर्थात् जिस बिन्दु का ध्यान बाह्य त्राटक में कर रहे थे, उसी का ध्यान नेत्र बंद करके करें।

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